रूस से डर लगता है ? अमेरिका और यूरोप को
आज बहुत से लोग इस बात से सम्भवतः सहमति व्यक्त नहीं करेंगे और इस प्रश्न का उपहास भी कर सकते हैं कि अमेरिका और यूरोप रुस से क्यों डरने लगे ?
सच्चाई ये है कि आज का रुस उस भव्य राजप्रासाद के समान है जिसे कभी किसी धनी और प्रतापी व्यक्ति ने बनवा तो दिया था पर अब उसके उत्तराधिकारियों के पास उस राजप्रासाद की मरम्मत और रंगरोगन तक के पैसे नहीं हैं। एक समय था जब रुस के शहरों की चमक दमक यूरोप के शहरों के समान ही थी, बढ़कर नहीं तो कम भी नहीं।
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रूस से डर लगता है ? अमेरिका और यूरोप को |
आधुनिक रुसी सैनिक
अमेरिका और नाटो एक तरफ, सोवियत संघ रूस एक तरफ। शीतयुद्ध व उस कालावधि में जब संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ रुस में हथियारों की होड़ मची तब रुस ने सबको पराजित कर दिया। इतने शस्त्रास्त्र बनाये और बटोर लिये कि आज उन्हें रखना और अनुरक्षित करना भी कठिन है। अब प्रश्न ये है कि सारी बातें तो ठीक है, पर इतना डर क्यों ?
तो इसका उत्तर है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब तय हो गया कि हिटलर की पराजय होने को है और रेड आर्मी जर्मनी में घुसी तब उसने जर्मनी में जिस पाशविक प्रवृत्ति का परिचय दिया, उसे यूरोपीय देश और वहाँ के लोग अबतक नहीं भूले। युद्ध और उसकी विभीषिका एवं विजेता द्वारा पराजितों का दमन एक ऐसा विषय है जिसपर संभवतः मनुष्य कभी भी नियंत्रण नहीं कर सकेगा।
जब रुसी सैनिक जर्मनी में घुस गये और उन्हें दिख गया कि प्रतिरोध कम होता जा रहा है तो उनका उत्साह बढ़ता गया। जहाँ प्रतिरोध हुए, क्रूरता से दमन किया गया। बर्लिन में सोवियत संघ के सैनिकों ने अनगिनत बच्चों व महिलाओं के साथ बलात्कार किया और विरोध करने पर हत्या [2]
ये जो युद्ध का खेल होता है, इसमे भय की महती भूमिका होती है। सामनेवाले में भय व्याप्त हुआ और आपका कार्य सम्पन्न हो गया। कहते हैं ना कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। यूरोपीय देशों में, विशेष कर जर्मनी के लोगों में उन घटनाओं का भय बना रहा। रुसी सैनिकों के अत्याचार की कहानियां सुनती और सुनाई जाती रहीं। जब सबको पता है कि वैसे ही लोगों के हाथों में अणु, परमाणु बमों का बहुत बड़ा संग्रह भी है तो ना डरने का कोई कारण है क्या ?
इसमें कोई संदेह नहीं कि 1991 के बाद परिस्थितियों में परिवर्तन हुआ है। रुस आर्थिक रूप से दुर्बल हुआ, उसे इनलोगों ने पंगु बनाने के यथासंभव प्रयास कर लिया परंतु जो बात ध्यान देने वाली है, वो ये है कि सामनेवाले के पास चाहे खाने के पैसे ना हों परंतु वह कंधे पर कालाश्निकोव रखके घुम रहा हो तो क्या उससे गाली गलौज, धक्का मुक्की करना कोई बुद्धिमानी है ?
रुस के पास आज भी हथियारों का संग्रह अमेरिका से बड़ा है। यूरोप और अमेरिका के पास नि:सन्देह पैसा भी बहुत है और साथ ही नये अत्याधुनिक तकनीक वाले शस्त्रास्त्र हैं पर उन्हें कम से कम ये तो पता ही है कि रुस से लड़ना भिड़ना समय व्यर्थ करने के समान है, उसे अपने कोने में पड़ा रहने देने में ही भलाई है। व्यवहारिक रूप से रुस भी अपनी सीमाओं को समझता है और इसीलिए अनर्गल उछलकूद नहीं करता है। परंतु जब पुतिन जैसा कोई नेता रुस का नेतृत्व करने लगता है तो इनकी धड़कनें असामान्य होती रहती हैं।
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