भारत पर चीन ने क्यों हमला किया था ?
कोई कुछ भी कह सकता है सबकी अपनी मानसिकता और अपने विचार हो सकते हैं लेकिन इसका मुख्य कारण था दलाई लामा को भारत में शरण देना था जो एक सच्चाई है और जिसको बुद्धिजीवी बोलने से कतराते हैं वजह क्या है इसकी आजतक मैं भी समझ नही पाया,
अब देखीये पुरे घटनाक्रम को-
मार्च 1959 में दलाई लामा नाटकीय ढंग से सीमा पार करके भारत में शरण लेता है वोही दलाई लामा जिसको चीन किसी भी कीमत पर खत्म कर देना चाहता था जिसके पुरे महल को ही बमबारी में उडा दिया था उसको मारने के लिये और उसी लामा को शरण देता है भारत,अब तक हिन्दी चीनी भाई भाई होते थे लेकिन अब चीनी अन्दर ही अन्दर भारत से दुश्मनी पाल रहा था,
फिर चीन के राष्ट्रपति भारत यात्रा करते हैं जिनको भारत रत्न भारत के महान सपूत जवाहरलाल नेहरू कालीन और ऊन का काम करती बारूद फेक्ट्रीया दिखाते हैं और चीन बदला लेने के अपने प्लान को आगे बढाता है और लगभग 2 साल की तैयारी करके सीमा तक सड़कें बना कर गोला बारूद जमा करके 20 अक्तूबर 1962 को जोरदार तरीके से युध की शुरुआत कर देता है और हिन्दी चीनी भाई भाई में हिन्दी भाईयों को शहीद करना शुरु कर देता है,
दलाई लामा को शरण देकर भारत ने 5000 के लगभग जवान खोये वैसे सरकारी आंकड़ा 1383 शहीद हैं, मानसरोवर कैलाश खोया ।अंत में दलाई लामा को शरण देना ही भारत चीन युद्ध की प्रमुख वजह रही
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था कि बिपिन रावत ने चीन, पाकिस्तान और भारत में सक्रिय विद्रोही समूहों से युद्ध जीतने की बात कही थी. पाकिस्तान की मीडिया में भी बिपिन रावत की इस टिप्पणी ने काफ़ी सुर्खियां बटोरी थीं.
हाल ही में चीन और भारत के बीच डोकलाम सीमा पर काफ़ी तनातनी रही थी. चीनी मीडिया में युद्ध की धमकी लगातार दी जा रही थी. वहां की सरकारी मीडिया का कहना था कि भारत ने डोकलाम सीमा पर दुःसाहस किया है.
चीन भी कह रहा था कि भारत अपने सैनिकों को वापस बुला ले. दूसरी तरफ़ भारत का कहना था कि चीन वहां सड़क निर्माण का काम बंद करे.
1962 के भारत-चीन युद्ध में किसके साथ था पाकिस्तान
आज़ादी के बाद भारत के सभी युद्धों के गवाह रहे पत्रकार कुलदीप नैयर कहते हैं, ''मैं लालबहादुर शास्त्री जी के साथ काम करता था. उन्होंने मुझसे कहा था कि अगर चीन के साथ 1962 के युद्ध में पाकिस्तान हमारे साथ आ जाता तो हम लड़ाई जीत जाते. ऐसे में वो हमसे कश्मीर भी मांगते तो ना कहना मुश्किल होता. भारत ने पाकिस्तान से मदद नहीं मांगी थी, लेकिन मदद की उम्मीद की जा रही थी.'
उन्होंने आगे बताया, ''इस संदर्भ में मैंने अयूब ख़ान से पूछा था तो उन्होंने कहा था कि वो भारत को मदद देने के लिए तैयार नहीं थे. उस युद्ध में पाकिस्तान भारत के साथ नहीं था. इससे पहले मैंने जिन्ना से सवाल पूछा था कि अगर भारत पर कोई तीसरी ताक़त हमला करती है तो पाकिस्तान का रुख़ क्या होगा? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि हम भारत के साथ होंगे. हम ड्रैगन को साथ मिलकर भगा देंगे. वह इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट थे. वो कहते थे कि हम दोनों बेहतरीन दोस्त होंगे. जिन्ना कहते थे कि जर्मनी और फ़्रांस में इतनी लड़ाई हुई तो क्या वो दोस्त नहीं हुए.''
क्या अब भारत के ख़िलाफ़ खुलकर सामने आएगा पाकिस्तान?
नैयर आगे कहते हैं, ''अभी भारत और चीन के बीच युद्ध की स्थिति बनती है तो पाकिस्तान खुलकर भारत के ख़िलाफ़ आएगा. अब पाकिस्तान डटकर सामने आएगा. वो जो भी कर सकता है करेगा. पाकिस्तान दूसरे मोर्चे से सामने आए इस पर तो मुझे शक है, लेकिन वो चीन की मदद करेगा. भारत को समझ लेना चाहिए कि चीन के साथ युद्ध होता है तो पाकिस्तान उसकी तरफ़ नहीं होगा. हो सकता है कि अमरीका पाकिस्तान पर इतना दबाव बनाए कि वह तटस्थ रहे.''
वहीं सविता पांडे कहती हैं, ''55 साल में बहुत कुछ बदला है. पाकिस्तान में कई सरकारें आईं और गईं. पूरी दुनिया की राजनीति बदल गई है. पहले जो शक्ति का समीकरण था वो आज की तारीख़ में नहीं है. भारत और अमरीका के संबंधों में काफ़ी बदलाव आया है. भारत और पाकिस्तान के बीच अलग मुद्दा और चीन के साथ भारत की अलग समस्या है.''
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